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The Matter of Compensation To State GST Due To COVID-19

The Matter of Compensation To State GST Due To COVID-19

राज्यों की क्षतिपूर्ति का मामला

आखिर क्या हुआ जीएसटी की 41 वीं मीटिंग में

कोविड -19 के प्रभाव से केंद्र और राज्यों के राजस्व में भारी कमी आई है लेकिन सरकारों को अपने खर्चे और विकास की योजनाएं चलाने के लिए धन की आवश्यकता तो रहेगी ही और जीएसटी कौंसिल की 41 वीं मीटिंग इसी मुद्दे का हल निकालने के लिए पहल की गई है . देखिये राजस्व यदि राज्यों का का कम हो रहा है तो केंद्र का राजस्व भी इससे अछूता नहीं है और इस मुद्दे पर राजस्व का संकट दोनों और ही है या हम यह कहें कि चरों और ही है . लेकिन यहाँ चर्चा राज्यों के इस साल के जीएसटी राजस्व में नुकसान की है कि इसके लिए क्या किया जा सकता है .

जीएसटी कौसिल की 41 वीं मीटिंग में जो कुछ विचार विमर्श हुआ और केंद्र सरकार द्वारा जो राज्यों को राजस्व में कमी से क्षतिपूर्ति के लिए ऋण लेने का प्रस्ताव दिया गया जिस पर राज्यों से अलग अलग प्रतिक्रियाएं आ रही है आइये सरल भाषा में समझें कि यह मुद्दा क्या है और इतना अधिक इस पर चर्चा क्यों हो रही है और यह भी देखें कि इसके अलावा कोई और विकल्प भी हैं ?

असल में इस मीटिंग का उद्देश्य केंद्र की और से राज्यों को राजस्व नुक्सान से भरपाई नहीं था बल्कि राजस्व में कमी और क्षतिपूर्ति सेस से होने वाली वसूली के बीच जो बड़ा अंतर आने वाला है उसकी क्या व्यवस्था हो सकती है इसके बारे में केंद्र के विचारों या विकल्पों से केंद्र राज्यों को अवगत कराया गया है .

आप यह मान कर चलिए जो भी राजस्व में कमी आई है या इस वर्ष बचे हुए समय में आने वाली है उसका कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जा रहा है क्यों कि इस सम्बन्ध में जो भी ऋण लिया जाएगा उसका और उसके ब्याज का भुगतान क्षतिपूर्ति सेस की वसूली से ही किया जाएगा और इसके लिए क्षतिपूर्ति सेस को जो कि इस समय 5 साल के लिए ही है उसे आगे बढ़ाया जाएगा.

देखिये यदि राज्यों को जीएसटी लागू होने के कारण कोई राजस्व का नुक्सान हो रहा है तो केंद्र को इसकी पहले 5 वर्ष तक भरपाई करनी है और इसके लिए क्षतिपूर्ति सेस कुछ वस्तुओं पर लाया गया है जिनमें तम्बाकू और उससे जुड़े उत्पाद मुख्य रूप से शामिल है और इस रकम से राज्यों को राजस्व में कमी की क्षतिपूर्ति की जाती है लेकिन इस यह पूर्ति इस सम्बन्ध में एकत्र सेस से ही की जा सकती है और इस अंतर को भारत सरकार के
कंसोलिडेटेड फण्ड से नहीं किया जा सकता अर्थात इसकी आपूर्ति तो होगी लेकिन यह क्षतिपूर्ति सेस की वसूली से ही होगी भले ही इसके लिए सेस को 5 साल से आगे बढ़ाना पड़े. इस समय सेस से भी वसूली एक सीमा तक ही हो सकती है और इसके द्वारा क्षतिपूर्ति की भी सीमा है लेकिन इस समय जो राजस्व का नुक्सान है वह कोविड -19 के कारण बहुत अधिक होने वाला है इसलिए विकल्पों की तलाश भी जरुरी है क्यों कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को अपने खर्चे और विकास के लिए धन की आवश्यकता तो रहेगी ही .

केंद्र के आकलन के अनुसार इस वित्त वर्ष में 10 प्रतिशत राजस्व की वृद्धि मानी जाए तो क्षतिपूर्ति की राशी पिछली वर्ष की राशि से कम होकर 97 हजार करोड़ होनी चाहिए और यह केंद्र का अनुमान है कि वह सेस के रूप में 65 हजार करोड़ की वसूली कर सकेगी . लेकिन इस वर्ष कोरोना के प्रकोप के प्रभाव से राज्यों के राजस्व में कमी की राशी लगभग 3 लाख करोड़ रूपये के आसपास रहने की उम्मीद है इसमें केंद्र के अनुमान के अनुसार 65 हजार करोड़ रूपये तो सेस से वसूल हो जाएगा लेकिन शेष रहा लगभग 2.35 लाख करोड़ के घाटे की कोई पूर्ति का फिलहाल कोई साधन केंद्र के पास नहीं है . इस सम्बन्ध में कुछ राज्यों की राय यह है की पहले 5 साल तक होने वाले हर घाटे की आपूर्ति केंद्र किसी भी तरह से को करनी चाहिए और इसके लिए ऋण भी लेना पड़े तो केंद्र सरकार ले और उसे राज्यों में आवश्यकता अनुसार बाँट दे.

एक तो इस मीटिंग को लेकर कोई प्रेस रिलीज़ भी जारी नहीं हुआ और सरकार के प्रस्ताव का भी की प्रिंट उपलब्ध नहीं है और इसका इन्तजार हमने 29 तारीख की शाम तक किया लेकिन इसके बाद जो भी जानकारी जहाँ से भी उपलब्ध हुई उसके अनुसार आपको सरल भाषा में इस मीटिंग में रखे गए विकल्पों और उससे जुड़े मुद्दों के बारे में बता रहे है ताकि आप समझ सकें की आखिर यह क्या समस्या है जिसकी इतनी चर्चा हो रही है.

इस 3.00 लाख करोड़ के इस अनुमानित घाटे के लिए केंद्र ने राज्यों के सामने 2 प्रस्ताव रखें हैं एक तो राज्य 97 करोड़ के घाटे के लिए एक विशेष व्यवस्था के अंतर्गत रिज़र्व बैंक से ऋण ले जिसकी गारंटी केंद्र सरकार देगी जिसका भुगतान सेस से हुई वसूली से किया जाएगा ताकि राज्यों के राजस्व में कमी की तत्कालीन आपूति हो सके और इस पर ब्याज भी उचित दर से ही लगाया जाएगा. यह ऋण सेस की वसूली से प्राप्त रकम के द्वारा चुकाया जाएगा और यह ऋण छोटा भी होगा और इसे 5 साल बाद सेस की वसूली किया जाएगा अर्थात इन राज्यों का 5 बाद भी सेस में हिस्सा बना रहेगा और इस इस प्रस्ताव से ऐसा लगता है कि सेस को जो कि 5 साल के लिए था उसे आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन सवाल यह है कि क्या इस ऋण से राज्य सरकारों का काम चल जाएगा ? यह तो प्रत्येक राज्य की अपनी स्तिथी पर निर्भर करता है कि इस समय उनकी जरुरत क्या है .

लेकिन सवाल यह है राजस्व का घाटा तो 3 लाख करोड़ रुपये का है तो शेष राशि सेस की वसूली जो की 65 हजार अनुमानित है के बाद 2.35 लाख करोड़ रूपये का अन्तर बचता है उसकी राज्य व्यवस्था कैसे करेंगे और इसीलिये एक और विकल्प दिया गया है और यह दूसरा विकल्प यह है राज्य कुल 3 लाख करोड़ में से 65 करोड़ की सेस से वसूली को छोड़ते हुए बचे हुए लगभग 2 .35 लाख करोड़ के लिए रिज़र्व बैंक से विचार विमर्श कर ऋण लें.

राज्य भी एक असमंजस की स्तिथी में हैं और वे इस समय बहुत अधिक ऋण लेना नहीं चाहते लेकिन अभी शायद और कोई विकल्प नहीं है क्यों कि इस समय कर की दर बढ़ा कर राजस्व एकत्र करने का ना तो समय है ना ही इसमें कोई समझदारी है और इसके अतिरिक्त जब की यह ऋण उसके संसाधनों पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं डालेगा क्यों की इसका भुगतान तो आगे जाकर उपभोक्ताओं से वसूल होने वाले सेस से ही होने वाली है . अधिकांश राज्यों को इस दूसरे विकल्प का ही सहारा लेना पडेगा क्यों कि इस समय राजस्व वृद्धि की तो कोई आशा नहीं है . देखते हैं आने वाले दिनों में कौनसा राज्य किस विकल्प के लिए जाता है .

राज्यों को इस विकल्प का चुनाव 7 दिन के भीतर करना है कि वे 97 हजार करोड़ रूपये का ऋण लेना चाहते हैं या वे पूरे शेष आपूरित घाटे अर्थात 2.35 का ऋण लेना चाहते हैं . राज्यों के पास ज्यादा विकल्प नहीं है उन्हें यह 2.35 लाख करोड़ का घाटा कहीं से तो जुटाना ही पडेगा वरना उनका काम कैसे चलेगा? सच बात यह है कि केंद्र सरकार इस मामले में और कोई सीधी मदद करने की स्तिथी में नहीं है तब फिर राज्यों के लिए ऋण की व्यवस्था करना या करवाना और बाद में इसे उपभक्ताओं से सेस वसूल कर इसको चुकाना ही एक विकल्प है .

राज्यों का भी एक प्रस्ताव हो सकता है कि केंद्र राज्यों की जरुरत के हिसाब से एक ऐसी रकम का आंकलन करे और इसके लिए स्वयम लोन ले और जब यह लोन क्षतिपूर्ति सेस से ही होना है तो फिर राज्यों के आलग अलग ऋण लेने की कहाँ जरुरत है जिसके जवाब में कुछ विशेषज्ञों की यह राय यह है कि यह सारा कर का अंतर जीएसटी को लागू करने से नहीं है बल्कि इसका बहुत बड़ा अंतर कोविड के कारण है लेकिन ऋण चाहे पहले विकल्प के तहत हो या दूसरे विकल्प के रूप में इसका भुगतान तो क्षतिपूर्ति सेस से ही होना है . यदि राज्य कम ऋण लेंगे तो क्षतिपूर्ति सेस 5वें वर्ष के बाद एक या दो साल ही आगे बढेगा और यदि राज्यों ने ज्यादा ऋण लिया तो क्षतिपूर्ति सेस 5वें वर्ष के बाद अधिक साल तक आगे बढेगा.

केंद्र सरकार ने भारत सरकार के महाअधिवक्ता की राय से भी मीटिंग के दौरान राज्यों को अवगत करा दिया है जिसके अनुसार राज्यों के इस घाटे की पूर्ति के लिए सेस फंड के अलावा भारत सरकार के कंसोलिडेटेड फण्ड का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है लेकिन इस कारण से राजस्व की कमी से राज्य और केंद्र दोनों ही जूझ रहें है इसलिए अब इसका कोई हल तो केंद्र के नेतृत्व में निकालना ही होगा क्यों कि यह जैसा कि माननीय वित्त मंत्री महोदय ने भी कहा है कि एक “प्राकृतिक आपदा” है तो फिर केंद्र और राज्यों दोनों को ही इसका सामना आपसी सामंजस्य से ही करना होगा.

सेस इस समय मुख्य रूप से तम्बाकू और इससे जुड़े पदार्थों पर है और इसके अतिरिक्त कुछ प्रकार की करों पर है और चूँकि ऑटोमोबाइल सेक्टर से आप ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते तो फिर आने वाले समय में तम्बाकू पदार्थो पर आप बढ़ी हुई सेस देखेंगे जो शायद कोविड का प्रभाव कम होने पर ही नजर आयेगा. यह सेस 5 साल से जादा चलेगी यह भी लगभग तय है वैसे भी एक बार कोई सेस लग जाए और वसूल भी होती रहे तो वह या तो उसी नाम से या किसी और नाम से जारी रहता ही है .

आपके लिए सरल भाषा में समझाया गया है कि जीएसटी कौसिल की 41 वीं मीटिंग में हुआ क्या है . जीएसटी कौसिल इस मसले पर फिर से कुछ दिन बाद मिलेगी तब यह मामला और इस पर लिया गया फैसला और भी ज्यादा स्पष्ट हो जाएगा.

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The Matter of Compensation To State GST Due To COVID-19

 

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