CONSULTEASE.COM
Webhosting728x90

Sign In

Browse By

दुनिया के पूंजीपतियों का नया घोषणापत्र

दुनिया के पूंजीपतियों का नया घोषणापत्र

अमेरिका की टॉप कम्पनीज के सीईओ’ज की एसोसिएशन “बिज़नेस राउंड टेबल” जिसमें वहां की एप्पल से लेकर वालमार्ट तक के सीईओ सदस्य हैं, ने 19 अगस्त 2019 को अपना नया घोषणा पत्र जारी किया है जिस पर 181 कम्पनियों के सीईओ के हस्ताक्षर हैं। यह घोषणा पत्र एसोसिएशन के पालिसी डॉक्यूमेंट है।

नए घोषणापत्र का नाम “स्टेटमेंट ऑन द परपज़ ऑफ अ कारपोरेशन” है। ऐसा पालिसी डॉक्यूमेंट एसोसिएशन द्वारा 1978 से जारी किया जाता है।

अभी तक के घोषणा पत्रों के केंद्र में सिर्फ शेयरहोल्डर ही रहते थे अर्थात अधिकतम लाभ व लाभांश।

लेकिन इस बार एसोसिएशन के अध्यक्ष जैमी डिमोन जो जेपी मॉर्गन चेज एन्ड कम्पनी के सीईओ भी हैं ने कहा कि हमारा कमिटमेंट अर्थव्यवस्था को गति देना है जो सभी अमेरिकन्स को सर्व करती है।

इस स्टेटमेंट के अनुसार कम्पनियों का उद्देश्य शेयरहोल्डर के लिए अधिकतम लाभ कमाने की बजाय शेयरहोल्डर के साथ-साथ अन्य स्टेकहोल्डर जैसे ग्राहक, कर्मचारी, सप्लायर, समाज, पर्यावरण आदि के हितों के साथ भी सन्तुलन बनाना है।

इन अमेरिकन सीईओ की चिंता के बैकड्रॉप में हमें 2007-08 की विश्वव्यापी मंदी की छाया दीखती है। उसके बाद से पूंजीवाद के विरुद्ध धीरे-धीरे एक गुस्सा नजर आता है। हार्वर्ड के 2016 के अध्ययन में 18 से 26 साल के 50% युवा पूंजीवाद के खिलाफ थे। अन्य कई अध्ययनों में भी यह तथ्य उभरकर सामने आया है।

भारत के संदर्भ में:-

मेरी राय में शुरुआत में तो पूंजीवाद बड़ा आकर्षक लगता है। इससे बेरोजगारी तेजी से कम होती है। सभी को आगे बढ़ने के समान अवसर मिलते हैं, जीडीपी तेजी से दौड़ती है। ग्राहकों को बाजार में चुनाव का अवसर मिलता है। सप्लायर्स को सप्लाय के लिर नए अवसर मिलते हैं। यह बड़ा ही सुखद दौर होता है। जैसा हमने हमारे देश में 1991 के बाद देखा गया। एक सरकारी एयरलाइन्स के मुकाबले जेट, एयर डेकन, किंगफिशर, सहारा देखी।

एक एलआईसी की बजाय अनेकों बीमा कंपनियां देखी। एक सरकारी टेलिकॉम ऑपरेटर की जगह दर्जनों मोबाइल कम्पनी देखी।

सब खुश थे, ग्राहकों को अच्छी, सस्ती सेवाएं मिल रही थी, प्रोडक्ट मिल रहे थे। सप्लायर को कोई मोबाइल टावर का काम, कोई टावर में तेल भरने का काम, कोई एयर लाइन्स के लिए लॉजिस्टिक के ठेके। खूब रोजगार पैदा हुए। खूब भर्तियां निकली। खूब पूंजी निवेश हुआ। खूब मांग बढ़ी। ग्राहकों के पास जमकर पैसा रहा। जमकर खरीददारी हुई।

करीब 2010 के बाद पूंजीवाद अपने दूसरे फेस में आया। कंसोलिडेशन का दौर आया। मर्जर्स एंड एक्वीजीशन होने लगे। आपस में गलाकाट प्रतिस्पर्धा हुई। एक दूसरे से सस्ता माल व सेवाएं बेचने की होड़ शुरू हुई। ग्राहक खुश। उसे तो और सस्ता मिल रहा था।

लेकिन इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में कमजोर खिलाड़ी टिक नहीं पाए। कई सीमेंट कम्पनियां बन्द हो गई। स्टील कम्पनियां बन्द हो गई। प्रोडक्शन कट हो गया। जो कमजोर थे वो मर गए। बचे हुओं ने मिलकर कार्टेल बना लिए या बना लेंगे। एयरलाइन्स कम्पनियां बन्द। टेलीकॉम बन्द। ग्राहक अभी तक खुश। क्योंकि उसको तो सस्ता मिल रहा है। लेकिन लाखों की तादाद में नोकरियाँ गई। जो वेंडर व सप्लायर थे उनका काम बंद। उनके जो प्रॉफिट थे वो डूब गए। आगे का काम बंद।

उद्योग धन्धे बन्द होने लगे।नोकरियाँ गई। वेंडर व सप्लायर के पैसे डूबे। आगे का धंधा भी बंद। वेंडर व सप्लायर के यहां जो थोड़ी-थोड़ी लेबर थी वो भी बेरोजगार।

इससे डिमांड और कम हुई। तो कॉरपोरेट को अपना अस्तित्त्व बचाने के लिए फिर संघर्ष। इस संघर्ष में वे कॉरपोरेट भी मर जाएंगे जो पहले दौर में बच गए। जैसे आईडिया और वोडाफ़ोन पहले दौर में बच गए।

फिर नौकरी जाएंगी। फिर डिमांड कम। फिर बची हुई कम्पनियां कम डिमांड के साथ मुनाफा बढ़ाने के लिए कार्टेल बनाकर कीमतें बढ़ाएंगी।

बची खुची कमी टेकनोलोजी व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पूरी कर दी। उसकी वजह से भी नौकरी जा रही हैं।

इस तरह मन्दी का कुचक्र चल रहा है।

समाधान सरकारी उपाय:-

इस कुचक्र को तोड़ने के लिए बिग पुश की थ्योरी लगानी पड़ेगी। जैसे एक कार को चलाने के लिए मिनिमम फ़ोर्स की जरूरत होती है, अगर उससे कम फ़ोर्स लगाएंगे तो वो कार कभी नहीं चलेगी। अगर रुकी हुई कार को चलाना हो तो बिग पुश देना पड़ता है। वही हाल मन्दी के कुचक्र में फंसी अर्थव्यवस्था के साथ होता है। उसको बिग पुश देते हैं तब मन्दी का कुचक्र टूटता है।

इस समय समस्या प्रोडक्शन की नहीं है। समस्या डिमांड बढ़ाने की है।

1. सरकार को पूरा जोर कृषि क्षेत्र का प्रोडक्शन बढ़ाने में लगाने की जरूरत है। किसानों की ज्यों ही आय बढ़ेगी, तुरन्त डिमांड बढ़ेगी। किसान बहुत बड़ा कंज्यूमर भी है।

2. इंफ्रास्ट्रक्चर में हैवी इन्वेस्टमेन्ट किया जाए जो लेबर ओरिएंटेड हो।

3. नरेगा जैसी स्किम के माध्यम से निचले स्तर पर पैसा पहुंचे। तो डिमांड क्रिएट होगी।

4. बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा आसान फंडिंग हो। जिससे बाजार में तरलता बढ़े।

5. उद्योग जगत को लेबर ओरिएंटेड इंडस्ट्री पर करों में छूट दी जाए।

6. एक्सपोर्ट बढ़ाने पर पूरा जोर हो। धारा 80एचएचसी जैसे प्रावधान वापिस आएं अर्थात एक्सपोर्ट टैक्स फ्री हो।

7. दिवालिया कानून को थोड़ा उदार बनाया जाए, जिससे बीमार उद्योंगो का इलाज हो नकि उनको आज ही मार दिया जाए।

8. सरकार को आयतों में कमी करनी चाहिए। जैसे चीन से जो सस्ता माल आ रहा है उस पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर आयतों को रोका जाए।

9. उद्योग जगत द्वारा अपनाए जाने वाले समाधान , जैसा बिज़नेस राउंड टेबल ने घोषणा की है:-

वैसे तो भारत में बहुत पुराने समय से “उद्योगपतियों को संसाधनों का ट्रस्टी” माना गया था तथा व्यवसाय की सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा हमेशा से रही है। पुराने उद्योगपति बिड़ला, टाटा, बजाज आदि ने सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

लेकिन आज के समय में हमारे उद्योगपतियों को सबसे ज्यादा फोकस व्यापक रोजगार को देना चाहिए। इसके किए इन्हें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल फेजड manner में व जुडिसियसली करना चाहिए। ताकि रोजगार का संकट न आए।

क्योंकि ultimately रोजगा बढ़ेगा तो उद्योग जगत का व अर्थव्यवस्था का ही भला होना है। वह पैसा वापिस डिमांड जनरेट करेगा एवं उद्योग व अर्थव्यवस्था फ्लोरिश होगी व मन्दी का कुचक्र टूटेगा।

डेफिसिट फंडिंग:-

इनके लिए डेफिसिट फंडिंग करनी पड़े तो वो भी करी जानी चाहिए। थोड़ी बहुत मंहगाई बढ़ेगी। कोई बात नहीं। अर्थशास्त्री कहते हैं धीमी-धीमी मंहगाई अर्थव्यस्था रूपी फसल के लिए बारिश का काम करती है।

अगर मंहगाई कम भी हो गई लेकिन आपकी नौकरी जाने से या व्यापार या उद्योग बन्द होने से क्रय शक्ति ही खत्म हो गई तो सस्ती वस्तुओं व सेवाओं को कौन खरीदेगा?

Get unlimited unrestricted access to thousands of insightful content at ConsultEase.
₹149
₹249
₹499
₹699
₹1199
₹1999
payu form placeholder


If you already have a premium membership, Sign In.
Profile photo of CA Raghuveer Poonia CA Raghuveer Poonia

Jaipur, India

Since 1995, He is handling all aspects of trust- income-tax registration u/s 12A, 80G, 10 (23C), compliance work, FCRA, foreign grants, NITI Ayog registration, Auditing, due diligence of channel partners, GST on NGOs, Income Tax scrutiny related to NGO/NPO and Social Service Organisation (Society/Trust/section 8/25 of companies act). This is the core area of practice and he has been handling the most complex cases pertaining to the above aspects. He is handling litigation /cases/matters related to income tax, before the Assessing Officer, CIT Appeals, ITAT across India. He is handling litigation /cases/matters related to GST, before adjudicating authority, Commissioner (Appeals) across India. He provides consultancy and opinions on income tax and GST matters for corporates and B2B. He is a regular panelist on TV debates as an expert in the matters of economy, taxation, Income Tax, GST, etc. He is a regular blogger and avid contributor on Income Tax, GST, and current economic issues. He also, handle issues related to ED investigation under PMLA. He also handles matters before NCLT regarding IBC and Company Law. He is a regular speaker in seminars/webinars. He has developed a new passion to be a YouTuber on the core matters mentioned above.

Discuss Now
Opinions & information presented by ConsultEase Members are their own.

Winhost728x90